भारतीय संस्कृति में हिमालय का विशेष महत्व - ऊखीमठ से लक्ष्मण नेगी की रिपोर्ट! भारतीय संस्कृति में पर्वतराज हिमालय को हिमवन्त,हिमवान्, नगराज, नगेश,नगपति,नगाधिपति, गिरिराज, जननी का हिम किरीट, भारत का दिव्य भाल, हिमाद्रि, विराट पौरूष, ऊध्व्रवाहु, आदि कहा गया है! महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य, कुमारसंभव के आरम्भ में हिमालय का यशगान देवात्मा कहकर किया है! हिमालय अनन्त काल से भारत की आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक चेतना की कर्मस्थली रहा है! अप्रितम सौन्दर्य, मण्डित हिम शिखर, निनादित जलप्रपात, वेगवती सरिताये, जल धाराये, सुरम्य वनस्थलियां, विशालकाय वृक्षावलि, भयावह गिरिगह्वर, उपत्यकाओं तथा मैदानों में फैले पुष्पौधानौ की सुगन्ध, पक्षियों का कलख,भ्रमरो के गुंजन का दिव्य संगीत, सुहाना हिमपात, दुरुह वन, एक से एक बढ़कर मोहक दृश्यावलिया, गुफाएं तथ पर्वतश्रृंगो के देवस्थान ऐसे आकर्षण हैं जो हिमालय की महिमा मंडित बना देते हैं! ऋषियों, मुनियों तथा मनीषियों ने वैदिक ऋचाएँ, प्रस्थानत्रयी उपनिषद, गीता, बह्मसूत्र की रचनाएँ - पौराणिक धर्मगाथाए हिमालय की गुफाओं तथा इसके विशाल प्रांगण में ही लिखी थी! सचिदानंद परब्रह्म की अनूभूति भी महर्षियों को हिमालय की गोद में ही हुई है इसलिए हिमालय को भारत देश का भाल या प्रहरी कहा गया है! देवताओं के हजारों वर्षों में भी है हिमालय तेरी महिमा का पूरा गुणगान नहीं किया जा सका है, फिर भी युगीन लेखकों, पर्यटकों, साहित्यकारों, संगीतकारों और पर्वतारोहियों की कृतियाँ भी बार - बार इस धारणा को दोहराती रही है कि इस धरती पर हिमालय प्रकृति की उत्कृष्ट कृति है! हिमालय उस सौन्दर्य और संगीत का निर्माता और उदगाता है जो जीवन को गरिमा के साथ जीने का अर्थ प्रदान करता है : हिमालय की महिमा का गुणगान ऋग्वेद में इस प्रकार किया गया है कि ----- यस्येमे हिमवन्तो महित्वा,यस्य समुद्रं रसया सहाहु: ! प्रकृति के चितेरे कवि चन्द्रकुंवर बत्वार्ल ने हिमालय का यशगान करते हुए कहा है ----- धन्य - धन्य हमको भी उस ही जननी का जाया, जिसकी गोद में बालक बनकर निराकार था आया! लेखक दिगम्बर दत्त थपलियाल ने भी नीलकंठ, चौखम्बा, नन्दा, त्रिशूल शिखरों के हिमगिरि, अगम, गहन, पारावारा और विशाल विस्तारा गढ़ देश हमारा, की पंक्तियों में हिमालय के प्रति अगाध प्रेम को दर्शाया है! रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी हिमालय की महिमा का गुणगान ------- हे ऊध्वर्बाहु नगराज, उद्वाहित मेघ, तुम्हारे ही शिखरों में छायाच्छन्न गुफाओं में,, कह कह किया है! अथर्ववेद में भी ------- गिरयस्ते पर्वता हिमवन्तोरण्य ते पृथिवी स्योनमस्तु,, पंक्तियों में किया गया है! सुब्रहमण्यम भारती ने भी ------ रजत श्रृंग तुषार शेखर, तुंग यह हिमवान गिरीवर,, शब्दों से हिमालय की महिमा का वर्णन किया है! सुमित्रानन्दन पंत ने भी ------ मानदंड भू के अखंड हे पुण्यधरा के स्वर्गरोहण, प्रिय हिमाद्रि तुमको हिमकण से घेरे मेरे जीवन के क्षण,, शब्दों से पर्वतराज की श्वेत धवल चादर का व्यायाखान किया है! निकोलस रोरिक ने भी ------- हे हिमसागर हे वसुधा के यशोस्नात सौन्दर्य, हे सहस्यमय तुम्हे नमस्कार है,, शब्दों में हिमालय का गुणगान किया है! गीता के श्लोक संख्या 10 से 24 तक यज्ञनाम् जप यज्ञेस्मि स्थावराणाम् हिमालय शब्दों में गहनता से लिखा गया है! महादेवी वर्मा ने भी हिमवत की महिमा को ---- पूर्व और पश्चिम सागर तक भू मानदंड सा विस्तृत, उत्तर दिशि में दिव्य हिमालय का अधिपति है शोभित,, पंक्तियों में अंकित किया है, महाभारत वनपर्व में भी ------- नरश्रेष्ठ हिमवनतं नगोत्तमम् शब्दों में हिमालय का वर्णन किया गया है! रामचरितमानस बालकाण्ड में ------ जहं तहं मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे, उचित वास हिम भूधर दीन्हे,, तथा विष्णु पुराण में ---यज्ञागार्थ मया स्रष्टो हिमवानचलेश्वर व ब्राह्मण्ड पुराण में ---- शैलानां हिमवन्तं च नदानामथ सागरम्,, से हिमालय के अद्वितीय सौन्दर्य का उल्लेख किया गया है! जय शंकर प्रसाद ने भी --- अचल हिमालय का शोभनतय्, लता कलित शुचि सानु शरीर,, शब्दों से हिमालय की गाथा को उकेरा है! इकबाल ने भी ------- परवत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमां का, वह सन्तरी हमारा वह पासवां हमारा,, शब्दों में हिमालय को सन्तरी की संज्ञा दी है! आर सी प्रसाद सिंह ने ----- दिव्य पुंजीभूत गौरव तुंग भारत भाल तुम हो, चेतना की मूर्ति मंगल मृण्मयी हिमज्वाल तुम हो,, और रामनाथ अवस्थी ने ----- सबसे पहले जिसके माथे पर सूरज तिलक लगाता है, जिसके यश को सागर अपनी अनगिन लहरों से गाता है,, जिसकी ऊचांई पर मैं ही क्या गर्वित भारतमाता है,,, जैसे जोशीले शब्दों से हिमालय का यशगान किया है! मत्स्यपुराण के अध्याय 116 में भी हिमवंत का गुणगान ----- पश्यति गिरिमहीनं रत्न सम्पदा, शब्दों में किया गया है! जगदीश गुप्त ने भी ------ हिम शिखर निर्झर, नदी - पथ चीड़ वन, मुक्त मन के लिए बन्धन हो गये, तथा गोपाल सिंह नेपाली ने ----- मैं पथिक प्यासा गंगाजल का, गिरिराज हिमालय मेरा है प्रहरी,, जैसे शब्दों में हिमालय की महिमा को कलमवद्ध किया है!
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