कोरोना योद्धाओं को सैल्यूट - सुनीता सेमवाल रुद्रप्रयाग की रिपोर्ट

विषय - लघु कथा कोरोना योद्धा


सरस विहार नवी मुंबई( काल्पनिक नाम) सुविधाओं से ओतप्रोत एक ऐसा शहर, जहांँ पहुंँचकर प्रत्येक व्यक्ति खुद को कुबेर समझने लगता है। किंतु.... क्या वर्तमान स्थिति को देखते हुए सुविधाएंँ मानव जीवन के वास्तविक सुख का पर्याय हैं??? आज यह सवाल मन मस्तिष्क में, वापस कौंधने लगा।
सुबह से ही तीव्र करुण क्रंदन कानों को भेद रहा था। किंतु... कोरोना के इस काल में यह जान पाना आसान नहीं था कि आखिर हुआ क्या है। क्योंकि घर से बाहर निकलने की सख्त मनाही थी, और मनाही न भी हो तो भी कोरोना के भय ने पांँव जकड़े हुए थे ।पांँचवे माले से कभी छत पर, तो कभी बालकनी पर जाकर जानने का प्रयास किया लेकिन हर बार नाकामी हासिल हुई.... मुंबई ! एक ऐसा शहर, जहांँ आप अपनी ही बिल्डिंग के लोगों से अनभिज्ञ हो सकते हैं, किसी को किसी से मतलब नहीं, पर मैं ठहरा गांँव का व्यक्ति, आधी जवानी तक तो गांव में रहा, फिर रोजगार की खातिर, मुंबई आया। आखिर ऐसे कैसे हार मान सकता था। भावनाएं तो मेरी अस्थियों में थी। मैं वहीं बेचैन भाव से बालकनी के आसपास चक्कर लगाता रहा...... धीरे-धीरे प्रातः काल की स्वर्णिम आभा छंँटनें लगी थी, और सूर्य अपने प्रचंड रूप में आने लगा था। मेरे हृदय की बेचैनी भी सूर्य के रौद्र रूप समान ही दहक रही थी।
धीरे-धीरे क्रंदन बढ़ने लगा, तभी
पहले माले पर रहने वाले डॉक्टर साहब का छोटा भाई और बेटा बड़ी हड़बड़ाहट में गाड़ी निकालते हुए दिखाई दिए वह बिल्डिंग के सुरक्षाकर्मी को कुछ कागजात भी दिखा रहे थे, ऊपर से तो साफ साफ नहीं दिखाई दे रहा था लेकिन शायद वह बाहर जाने का पास होगा ऐसा मुझे लगा। मैं डॉ साहब के परिवार से अच्छी तरह से परिचित था तुरंत ही उनके अनुज को फोन लगाया ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन.... करीब 4 बार घंटी बजने के बाद उन्होंने फोन उठाया हेलो मैं पांचवे माले से प्रमोद मिश्रा बोल रहा हूं मैंने कहा, क्या हुआ सब ठीक तो है ???आप और डॉक्टर साहब का बेटा इतनी हड़बड़ी में कहांँ जा रहे हैं???? लॉक डाउन है बाहर बीमारी का डर है फिर भी गाड़ी क्यों निकाल रहे हैं??? कहां जाना है??? इतना क्या जरूरी है??? मैं निरंतर बोले चले जा रहा था ।लेकिन उधर का स्वर मानो कुछ शांत सा था किसी अपने को खोने की पीड़ा में दब सा गया था । धीमे स्वर में बोले, अस्पताल से फोन आया है की भाई साहब का देहांत हो गया, संक्रमण ने आखिर उनको हमसे छीन लिया, और हम अभी अस्पताल जा रहे हैं, और शायद अंतिम दर्शन के लिए भी उन्हें घर नहीं लाया जाएगा ,वहीं से दाह संस्कार किया जाएगा, इतना कहकर उन्होने फोन रख दिया । और गाड़ी निकालकर बिल्डिंग से बाहर जाने लगे थोड़ी ही देर में उनकी कार आंखों से धूमिल हो गयी। डॉक्टर साहब और उनका बेटा तो चले गए थे किंतु .......मेरी धमनियों का रक्त मानो ठंडा पड़ चुका था। क्या?डॉक्टर साहब का निधन हो गया ओह! एक भले व्यक्ति का इस प्रकार से अचानक चले जाना मुझे भीतर तक द्रवित कर गया था। दरअसल डॉक्टर साहब पिछले तीन माह से कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे थे करीब छः हजार लोगों को ठीक करके घर पहुंँचाने के बाद डॉक्टर साहब आज स्वयं कोरोना से जिंदगी की जंग हार गये,और सबसे बड़ी विडंबना यह थी, इसको कोरोना के कारण एक करोना योद्धा और परम मित्र के अंतिम दर्शन के लिए हम चाह कर भी नहीं जा सके। खैर ......मुझे इस बात का जवाब मिल चुका था कि पहले माले से इस प्रकार का करुण और हृदय को व्यथित कर देने वाला रुदन क्यों सुनाई दे रहा था। उनकी मृत्यु का समाचार मिलते ही मेरे मन की गहरी जिज्ञासा स्वतः ही शांत हो गई।
....... यह लघु कथा एक काल्पनिक लघुकथा है। किंतु कल्पनाओं का जन्म भी वास्तविकता के धरातल से होता है यह आज के कोरोना काल की सच्चाई है। मैं सभी कोरोना योद्धाओं को सभी डॉक्टरों,नर्सों ,सफाई कर्मियों, सुरक्षाकर्मियों, पत्रकार बंधुओं, समाजसेवियों सभी का हृदय तल से अभिनंदन करती हूं सेल्यूट है ऐसे कर्मवीरों को।.......


स्वलिखित
सुनीता सेमवाल
(रुद्रप्रयाग उत्तराखंड