- "हर_एक_ बात_ गलत ही क्यों"
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मैं हर किसी को अपने साथ तौलूं
मैं वह तराज़ू नहीं हूँ
मैं हर एक खेल खेलूँगा
ऐसा खिलाड़ी मैं हूँ नहीं
मैं जैसा भी हूं
कोई मेरे जैसा है भी नहीं
मेरे अंदर ईर्ष्या भी है
पर किसी को गिराने का घमंड नहीं है
मैं हर किसी को धोखा दूं
वह धोखेबाज हूं नहीं
तेरे और मेरे वादों मैं फर्क सिर्फ इतना
तेरे झूठ मुट के वादे
मेरे वादे सच्चाई से परे
मैं सारे जग में चमकता रहूं
वह सूरज सा नहीं मैं
हर एक कोने में फैलूं
हर सूरज की किरण सा हूँ
हर एक विश्वास टूट जाए
वह विश्वासघाती नहीं हूँ मैं
हर वह सत्य बात पर टिक जाऊं
ऐसा सत्यवादी भी नहीं हूं
हर एक चरित्र पर उंगलियां उठा दूं
ऐसा परीक्षणकर्ता भी नहीं हूं
हर एक सही बात गलत ठहरा दूं
ऐसा शिक्षित भी नहीं हूं
हर एक विश्वास जीत जाऊं
ऐसा पुरुष भी नहीं हूं।।
-ऋतिक सती-
मैं हर किसी को धोखा दूं वह धोखेबाज हूं नहीं - ऋतिक सती