प्रेम का घरौंदा हमारा टूटता भी है बिखरता भी है, पर पुनः प्रेम के निर्माण से आ साथी इसे जोड़ दें - नीलम डिमरी

  •   "घरौंदा "


रेगिस्तान सा मेरा घरौंदा, 
पर है बहुत अनमोल रे। 
हैं मेरी भूली बिसरी यादें, 
इसको भावनाओं से तोल रे।। 


प्रेम का घरौंदा हमारा, 
टूटता भी है, बिखरता भी है।
 पर पुनः प्रेम के निर्माण से, 
आ साथी इसे जोड़ रे।।


आंधियां हमें बेघर करती 
सुंदर सपने हमारे हरती। 
तिनकों का या फूलों का, 
पर है बहुत अनमोल रे।।


जरा टूटा- फूटा है यह अब, 
नई उम्मीद से इसे बनायें। 
मिलेंगी सब खुशी यहीं पर, 
झूठे बंधन को छोड़ रे, 
पर है बहुत अनमोल रे।। 


मां सिखलाये पंख पसारना, 
रोज उड़ना, दाना चुगना। 
तिनका - तिनका जोड़ कर, 
बनायें इसे ना तोड़ रे। 
पर है बहुत अनमोल रे।। 


नीलम डिमरी 
 देवलधार, गोपेश्वर 
 चमोली, उत्तराखंड