बरगद की छांव (लघु कथा ) - सुनीता सेमवाल

बरगद की छांँव 
विधा - गद्य (लघु कथा )



अजी सुनते हो ..... जरा अजय को देख कर तो आओ ...... कहांँ है ???कब से आवाज लगा रही हूंँ??? पता नहीं कमबख्त सुबह-सुबह कहांँ चला गया ????? अखबार पढ़ते हुए राघव को विमला की तल्ख आवाज सुनाई दी , राघव और विमला अजय के मामा मामी थे , दरअसल 2 वर्ष पूर्व अजय के माता-पिता की , एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी । तब से राघव और विमला ही , अजय का पालन पोषण कर रहे थे । राघव ने विमला का मूड भांँपते हुए अखबार छोड़ा, और मजाकिया अंदाज में बोलते हुए रसोई घर की तरफ आए , क्या हुआ ? भाग्यवान क्यों सुबह-सुबह इतना गरम हो रही हो , देखिए जी मेरे बस की बात नहीं, अब इस शैतान को झेलना ,कभी किसी काम में हाथ तो बँटाता नहीं ,और दिन भर न जाने कहांँ गुम रहता है ,खाना खिलाने तक के लिए उसे ढूंँढना पड़ता है। अब बहुत हुआ, मैं अब किसी की इतनी चाकरी नहीं कर सकती ,भगवान ने अपने बच्चे तो दिए नहीं ,तो बेवजह सर दर्द क्यों लूंँ । विमला एक सांँस में बोल गयी । बेचारे राघव जी दुविधा में थे क्या करें ??? एक तरफ पत्नी थी , जिसके साथ उन्हें पूरा जीवन बिताना था ,और दूसरी तरफ बहन का बेटा था, जिसके सर से मांँ बाप का साया उठ चुका था। राघव विमला को समझाते हुए बोले, देखो विमला 2 वर्ष तो हो ही चुके हैं , बस पाँच सात वर्ष की बात और है , बच्चा पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए, तो हमारी जिम्मेदारी खत्म, और वैसे भी हमारा आगे कौन सहारा है ......अगर प्यार से इसकी देखभाल करेंगे तो, हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा ,राघव ने विमला को बहलाने का प्रयास किया । देखिए जी मैं कुछ नहीं जानती , बुढ़ापे की क्या बात करते हो आप ? अगर ऐसे ही परेशान रही तो जवानी में ही मौत आ जाएगी मुझे,ऐसे न कहो विमला ,आखिर 13 साल का बच्चा तुम्हें ऐसी क्या यातना दे रहा है, जो तुम ऐसा कह रही हो ,अच्छा जी...... आप तो चले जाते हो ,और शाम होने पर ही घर लौटते हो ,कुछ पता भी है कि आखिर दिन भर अजय करता क्या है?? अब कोई मैं उसकी आया तो हूँ नही, जो उसके आगे पीछे घूमती रहूँ, ठीक है ठीक है..... मैं आज अजय से बात करूंँगा की घर पर ही रहा करे, और खेलने भी जाता है तो बता के जाया करे ,की घर पर कब तक आयेगा । ठीक है जी बात तो आप शाम को कर लीजिएगा, लेकिन फिलहाल के लिए उसे ढूंँढने चलिए, मैं कहांँ पूरे गांँव में उसे ढूंँढती फिरुँ ??? यह कहकर विमला ने घर के किवाड़ लगा दिए, और राघव के साथ अजय को ढूंँढने के लिए निकल पड़ी,तभी उन्हें गांँव के कुछ बच्चे क्रिकेट खेलते हुए दिखाई दिए ,चलिए जी यहीं चलते हैं ,जरूर शैतान यहीं होगा ।आज तो उसकी खैर नहीं ....अच्छी डांँट लगाऊंँगी विमला ने कहा , विमला थोड़ा सब्र रखो ,बिन मांँ बाप का बच्चा है ,ज्यादा डांँटना ठीक नहीं , उसे बैठकर समझाने की आवश्यकता है राघव बोले , ठीक है ठीक है .....मैं कोई राक्षसी थोड़े ही हूंँ जो तुम्हारे भांँजे को निगल जाऊंँगी, अब चलो और बुलाओ उसे, लेकिन यह क्या ??? पास आने पर पता चला गांँव के सभी बच्चे वही थे ,लेकिन अजय उनके साथ नहीं था ,यह देखकर विमला का क्रोध और बढ़ गया ,देखा शैतान यहांँ भी नहीं है, अब खोजते फिरो उसे , जैसे कुछ और काम धाम ही नहीं हमारा .....राघव भी हैरान थे , कि आखिर अजय कहांँ जा सकता है ????उन्होंने गांँव के बच्चों से पूछा कि क्या अजय उनके साथ नहीं खेलता है ??तो वह सब एक स्वर में बोले ,नहीं अंकल अजय तो हमारे साथ कभी आता ही नहीं.... पता नहीं विद्यालय के पास वाले बरगद के पेड़ के पास जाकर वह क्या करता रहता है ????आप उसे वही ढूंँढो अक्सर हमने उसे उसी तरफ जाते हुए देखा है, राघव को अजय को ढूंँढने की एक राह दिखाई दी वो विमला से बोले , चलो विमला उधर ही जाकर देखते हैं, हांँ जी क्यों नहीं ....आखिर राजकुमार का राज्य अभिषेक जो करना है.... तो जरूर चलिए बुड़बुड़ाते हुए विमला भी साथ चल पड़ी , विद्यालय के नजदीक पहुंँचने पर दोनों ने इधर-उधर देखा ,तभी विमला की नजर विद्यालय के बाहर एक बड़े से बरगद के पेड़ पर बने चबूतरे पर पड़ी, अजय उसी चबूतरे में लेटा हुआ था, देखिए जी , तब आप मुझे सुना रहे हैं, यहांँ देखिए अपने भांँजे को क्या मजे से सोया हुआ है ।और यहांँ हम कितना परेशान हो रहे हैं। चलिए दबे पांँव चल कर देखते हैं। कि आखिर राजकुमार कर क्या रहा है ।राघव और विमला बरगद की तरफ चल दिए ।मम्मा पापा आप कहांँ चले गए ....मैं इस साल भी हर साल की तरह फर्स्ट आया हूंँ..... पर मुझे किसी ने प्यार नहीं किया .....ना ही कोई मिठाई लेकर आया...... और ना ही मुझे मेरा प्यारा बेटा कहकर, किसी ने गले से लगाया...... मम्मा पापा क्या आप कभी नहीं आओगे ????क्या अब मुझे कोई प्यार नहीं करेगा??? अजय बरगद को साक्षी मानकर अपने मम्मी पापा से यह बातें कर रहा था । उसके यह मासूम प्रश्न विमला और राघव के हृदय को भेद गये बस करो अजय , बस करो ,बस करो बेटा , हमें माफ कर दो ,हमें माफ कर दो कहकर विमला ने उसे रोते रोते गले से लगा लिया । विमला और राघव को सामने पाकर अजय भी जोर जोर से रोने लगा ।राघव की आंँखें इस दृश्य को देखकर स्वतः ही अश्रु धारा से बह पड़ी । दरअसल पिछले 2 वर्षों से अजय ने उस बरगद की छांँव को ही मांँ का आंँचल बना लिया था। उसके चबूतरे को ही पिता की गोद मान लिया था ।उसकी जटाओं को ही अपने खेल खिलौने और मित्र समझ लिया था । विमला के हृदय में दबी हुई मातृत्वता आज जाग गई थी । वो सोच रही थी , यदि यह बरगद की छांँव इस बच्चे की भावनाओं को समझ रही है, इसे आसरा दे रही है, तो एक इंसान होने के नाते हमारी संवेदनहीनता को धिक्कार है । उसने और राघव ने अजय को गले से लगा लिया,और कहा बेटा आज से हम ही तुम्हारे मांँ बाप हैं , और उन से बढ़कर तुम्हें प्रेम देंगे ,वास्तव में आज बरगद की छांँव ने उनके हृदय में ममता की छांँव को जगा दिया था ।


स्वरचित 
सुनीता सेमवाल 
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड