शशि नाम है पावन पावन
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कितना आकर्षक लोक लुभावन ,
ये शशि नाम है ही पावन पावन ||
हर माँ की ममता भी तुम हो
हर कवि की उपमा भी तुम हो |
हर रूपवति का रूप भी तुम हो
महारास का पूर्णेन्दु भी तुम हो
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कितना आकर्षक लोक लुभावन
ये शशि नाम है ही पावन पावन ||
कोई पूर्णिमा पूजे , कोई ईद को खोजे
रसिक रचना शोधे , निन्दक तुमको कोशे |
सागर सहित नक्षत्रादी सारे तारागण
हो तुम इन सबके अति प्रिय भाजन ||
कितना आकर्षक लोक लुभावन ,
ये शशि नाम है ही पावन पावन [|
हे अंबुनिधि ! , हे इन्दुमति !
हे विदुषि ! , हे शशि सुनो ! |
रसिक पाठक की यही पुकार अक्षर ब्रह्म को करो साकार ||
कितना आकर्षक लोक लुभावन ,
ये शशि नाम है ही पावन पावन ||
हैं अभिलषित कुछ शब्द शक्तियां
जो बनना चाहती तव रचनाधार |
तुम्हें देना चाहती कुछ उपहार
पर पहले करो तुम इन्हें साकार ||
कितना आकर्षक लोक लुभावन ,
ये शशि नाम है ही पावन पावन ||
निराकार ब्रह्म होंगे साकार
न भुला पायेंगें तेरा उपकार |
जब रसिक जन होंगें मनभावन
तब शशि नाम होगा पावन पावन ||
कितना आकर्षक लोक लुभावन ,
ये शशि नाम है ही पावन पावन ||
आचार्य सुभाष चन्द्र नौटियाल