" पक्षी "
जग-जग उड़ता,
नीले-नीले अम्बर में |
मानव ने किया बंद मुझे,
कैद हूँ मैं पिंजरे में ||
चूं- चूं करते हम अगर,
फिर क्यों हमें आजाद न करते |
मुझे पालने के शौकीन हैं,
पर मेरे दुख को न समझते ||
पक्षी हूँ मैं उड़ना चाहती हूँ,
रंगीन दुनिया में पंख फैलाना चाहती हूँ |
क्यों रखता कैद में जमाना हमको,
मैं अपना ही घर बसाना चाहती हूँ ||
मेरी चाह हैं, उड़ने दे मुझे,
दाना लेकर खुद आऊंगी |
रखा है कैदी बनाकर इंसान तूने,
आजाद कर, सूरज ढ़लने पर लौट आऊंगी ||||
अनीशा रावत ✍️
गोपेश्वर ( चमोली )
उत्तराखंड 😊