ऊखीमठ : मानव जाति ने आसूरी प्रवृत्तियों पर विजय पाने के लिए भक्ति से ही शक्ति का संचय किया है। जगत के सभी क्षेत्रों में शक्ति के ही विविध रूपों की सच्चे साधक पूजा करते हैं क्योंकि बिना शक्ति के कहीं भी सम्मान नही मिल सकता है। वास्तव में जगत जननी ने सत्यं शिवं सुन्दरम् की त्रिवेणी से देवताओं अमरत्व प्रदान किया है। देवभूमि उत्तराखंड में इस जगत जननी महामाया के अनेक रूपों की उपासना होती रहती है जिसमें केदार घाटी का कालीमठ सिद्धपीठ मनौवाधित फल प्राप्ति व साधना के लिए उत्तम माना गया है। यह तीर्थ सुर सरिता मन्दाकिनी के वाम पाश्र्व में सरस्वती नदी के तट पर विराजमान है तथा कलिकाल में परम सिद्ध दायक है,
इस तीर्थ में भगवती महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती तीनों रुपो में पूजित होने के कारण कालीमठ तीर्थ विश्व विख्यात है। स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में सिद्धपीठ कालीमठ की महिमा का वर्णन विस्तार से किया गया है। इस तीर्थ में भगवती काली ने रक्तबीज राक्षस का वध किया था।केदारखण्ड के अध्याय 89 के श्लोक संख्या 1 से लेकर 38 तक वर्णित भगवती काली की महिमा को बार - बार पढ़ने की लालसा बनी रहती है तथा भगवती काली की महिमा को बार - बार पढ़ने से मनुष्य भगवती काली की भक्ति में तत्लीन हो जाता है। केदारखण्ड के अध्याय 89 के अनुसार वशिष्ठ जी बोले ------ देवी ----- अब मैं कालिका का अत्यंत दुर्लभ माहात्म्य, जो कलियुग में दुर्जन मनुष्य से बहुत छिपाने योग्य है, तुम्हें बताऊंगा ! काली पूजन और स्मरण करने से भी प्रत्यक्ष फल देने वाली है। जो कोई मानव भक्ति से परम शिवा का पूजन करेगा वह प्रलयकाल तक रूद्र भवन में वास करता है। सतयुग में जो पुण्य करोड़ों वर्षों में प्राप्त होता है वह पुण्य सिद्धपीठ कालीमठ में तीन रात्रि प्रवास करने पर प्राप्त होता है इसमें सन्देह नहीं। जो सिद्धपीठ कालीमठ में वेदपारंगत ब्राह्मण को तिल की बनी धेनु दान करता है उसे समुद्र, वन और द्वीपों समेत पृथ्वी दान करने का फल मिलता है। वह करोड़ों सूर्य के समान तथा सकलकामनादायक विमानों से अक्षय लोक को प्राप्त करके चिरकाल तक आनन्द प्राप्त करता है। जो मनुष्य इस तीर्थ में साधु - संन्यासियों को दान देता है वह सूर्य के समान कान्ति वाले दिव्य विमानों से गन्धर्वों द्वारा गुणगान किये जाते हुए देवी लोक में पहुँचकर नित्य निवास करता है, वहाँ से भूमि पर आने पर धार्मिक, सत्यवक्ता और पुत्रों से समन्वित राजा होता है! सिद्धपीठ कालीमठ में जो मनुष्य गन्ध, अक्षत, पुष्प तथा विविध प्रकार के नैवेधो से कुमारी का पूजन करता है वह सिद्धीश्वरता को प्राप्त करता है। अनेक मुनिगणों से युक्त सरस्वती नदी के रमणीय तट पर मोक्ष मार्गदायक अनेक मनोरम तीर्थ है।सिद्धपीठ कालीमठ तीर्थ में ब्रह्म आदि देवता परम सिद्धी को प्राप्त हुए थे, जो इस तीर्थ में स्नान कर पितरों, देवो और ऋषियों का तर्पण करता है वह चराचर समेत सम्पूर्ण जगत का तर्पण कर लेता है तथा उस मनुष्य के पितर चौदहों इन्द्रो के समय तक तृप्त होते हैं, जो मनुष्य देवगणों से घिरे हुए कालीमठ क्षेत्र में प्राणों को छोडता है उसके मरने पर काशी या गया में श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, वह विशुद्धानन्द मुक्त हो जाता है तथा उसका पुनर्जन्म नहीं होता है! सरस्वती और इन्दीवर का संगम जहाँ है
उसमें स्नान करके मनुष्य सनातन ब्रह्म लोक में चला जाता है! कालीमठ क्षेत्र में महालिंग केदारनाथ से भी अधिक पुण्यदायक है, जिसके पूजन से ब्रह्म आदि देवताओं ने अपना - अपना पद प्राप्त किया इसलिए जो मनुष्य उस शिव लिंग का पूजन करता है वह परम पद को प्राप्त करता है! कालीमठ क्षेत्र प्रत्यक्ष फलदायक माना गया है उस तीर्थ में शंख, ढोल, और मृदंग के शब्द आज भी सुनाई देते हैं तथा कभी उस तीर्थ में मुनियों का महान अदभुत वेदधोष सुनाई देता है। कलियुग में मोक्षदायिनी काली के अलावा मनुष्यों को सर्वथा भोग और मोक्ष देने वाला कोई नहीं है! सिद्धपीठ कालीमठ के पश्चिम भाग में जो उत्तम शिवलिंग है वह भगवती काली के समान फलदायक है तथा वह सिद्धेश्वर नाम से प्रसिद्ध है! उस तीर्थ में मतंग नामक शिला परम स्थान देने वाली है वहां पर मतंग मुनि ने अत्यन्त दारुण तप किया था यह शिला भैरव तीर्थ के सामने है!कालीमठ तीर्थ में युगों से प्रज्जवलित धुनी की भस्म को धारण करने से मनुष्य जन्म मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य कालीमठ तीर्थ में एक मास तक फलाहार रहकर सरस्वती का मंत्र जपता है वह बृहस्पति के समान शास्त्रज्ञाता विद्वान होता है! आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल, प्रख्यात कथावाचक स्वयम्वर सेमवाल केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित माधव कर्नाटकी , शिक्षाविद देवानन्द गैरोला लखपत सिंह राणा बताते हैं कि भगवती काली के स्मरण मात्र से ही मनौवाछित फल की प्राप्ति होती है!