विश्वास नहीं होता मुझे अबकी उजली संतान पर, मां - बाप को ठुकरा दिया मुखौटा पहना किसी अनजान पर - नीलम डिमरी

""मुखौटा "" 
हे ईश्वर, 
तू ऐसी रचना कर 
इंसानियत भर दे इंसान में 
दोहरी जिंदगी का दिखावा 
न पूरा करना उसके अरमान में। 


यह दोहरा मुखौटा 
निकाल उनकी जिंदगी से 
सच का आईना दिखला दे उनको 
हालात की मजबूरी जिंदगी से। 


विश्वास नहीं होता मुझे 
अबकी उजली संतान पर 
मां - बाप को ठुकरा दिया 
मुखौटा पहना किसी अंजान पर।


परिवार में दांव - पेंच हो रहे 
बाहर खुशनुमा माहौल बोल रहे 
समय और आवश्यकता होने पर 
अपनों से लोग मुख मोड़ रहे। 


घर में मात - पिता का तिरस्कार है
क्यों पूजना मंदिर के भगवान को 
ईश्वर तू ऐसा मुखौटा बना दे 
और सन्मार्ग दे इंसान को। 


हे ईश्वर, 
मुझे अलादीन का चिराग बना दे 
सबके मुखौटे चेहरे से हटा दे 
यह दोहरी जिंदगी का दिखावा दूर कर, 
और साधारण जीवन इस जग में समा दे।। 


   नीलम डिमरी 
देवलधार गोपेश्वर 
चमोली, उत्तराखंड