धार्मिक और पर्यटन का केन्द्र देवग्राम - रघुवीर नेगी उर्गमघाटी

उर्गमघाटी के ग्राम पंचायत से 14 जुलाई 2014 को देवग्राम गीरा बांसा के गांवो को मिलाकर देवग्राम ग्राम पंचायत अस्तित्व में आयी। पूर्णी रावत देवग्राम की पहली प्रधान बनी देवग्राम जिसका प्राचीन नाम दयूड़ा है। लोक कथाओं के अनुसार सम्भवतः 1803 से पहले 360 मन्दिर हुआ करते थे जो भीषण बाढ़ में बह गये देवग्राम के गौरा मन्दिर में रखे गये 100 से अधिक मूर्तियां भूस्खलन से पूर्व इस बात की गवाह थी अब यहां 20 ढन पत्थर का शेर सहित कुछ ही मूर्तियां हैं यहां से भादों मास में नन्दा अष्टमी पर्व पर मां गौरा की एक छंतौली सबसे पहले श्री फ्यूलानारायण होकर भनाई बुग्याल जाती है।


उसके बाद ही उत्तराखण्ड में नन्दा महोत्सव शुरू होता है साथ ही यहां पर हजारों सालों पुराना देवदार का कल्प वृक्ष भी है। देवग्राम में कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की आराधना की थी। महर्षि दुर्वासा ने इन्द्र को यहां पर ही श्राप दिया था जिससे देवराज ने मुक्ति हेतू यहां इन्द्र गुफा में भवरें के रूप में तप किया था जो देवग्राम गाँव के ऊपर आज भी मौजूद है।


देवग्राम का बांसा गांव महर्षि और्व की तपस्थली रही है देवग्राम का केदार मन्दिर के पास 14वीं सदी में एक कुण्ड था जब लोग बदरी केदार की दुर्गम यात्रा नही कर पाते थे तो यहां पर अपने पूर्वजों का तर्पण करते थे अमृतकुण्ड पाण्डव नन्दा देवी नागदेवता मां जगदी दाणी देवी के अतिरिक्त यहां बाबा भैरव का प्रसिद्ध मन्दिर भी है जो पंचम केदार कल्पेश्वर के निकट है। देवग्राम उर्गमघाटी घाटी में होने वाले मणों मेला द्यूडा मणों का स्थल भी है यहां के बडोई नामक स्थान से तांबे के मंगरा जलधाराओं को जोशीमठ के नृसिंह मन्दिर ले जाया गया था। साथ ही 1925 में बना मोला मंगरा आज भी सुरक्षित है। देवग्राम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्वः श्री बहादुर सिह नेगी की जन्मभूमि भी है वर्तमान में देवग्राम मे 174 परिवार निवास करते है देवग्राम पंचायत देवग्राम गीरा बांसा को मिलकर बनी है पंच केदार में पांचवा कल्पेश्वर मंदिर भी इसी गांव के समीप कल्प गंगा के तट पर बसा है जो 12 महीने खुला रहता है। वर्तमान में देवेन्द्र रावत इस गांव के प्रधान है।