धरती का स्वर्ग तुंगनाथ घाटी - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ की खास रिपोर्ट

 ऊखीमठ : देवभूमि उत्तराखंड हिमालय के अन्तर्गत तुंगनाथ घाटी युगों से साधनास्थली रही है। यह पावन धरती प्रकृति के सुरम्य और स्वच्छन्द वातावरण के लिए विश्व विख्यात रही है। तुंगनाथ घाटी से हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य का अति सन्निकट से सूक्ष्म निरीक्षण किया जा सकता है।


इस घाटी में प्रकृति प्रेमी जब पर्दापण करता है तो खेतों, वनों, पर्वतों और नदियों को निहारने का सुनहरा अवसर मिल जाता है तथा उसका जिज्ञासु मन दूर - दूर तक हिमालय को देखने के लिए उत्सुक बना रहता है। इस पावन धरती के महत्व और गौरव को गम्भीरता से अध्ययन करने के पश्चात समस्त प्रकार के भ्रम, पूर्वाग्रह, मिथ्या धारणाएँ, किंवदन्तिया और विविध प्रकार की शंकाऐ स्वत: ही समाप्त हो जाती है क्योंकि यहाँ के पग - पग पर ईश्वरीय शक्ति का आभास हो जाता है। तुंगनाथ घाटी के सुरम्य मखमली बुग्यालों को प्रकृति ने बेपनाह सौन्दर्य से सजाया व संवारा है परिणामस्वरूप यह घाटी मिनी स्वीजरलैण्ड के नाम से विख्यात है!


तुंगनाथ घाटी का शीर्ष चन्द्रशिला नाम से जाना जाता है! इस शीर्ष पर पतित पावनी दुखतारिणी माँ गंगा का दिव्य मन्दिर स्थित है। केदारखण्ड के अध्याय 50 के श्लोक संख्या 9 से लेकर 18 तक इस तीर्थ का वर्णन किया गया है! केदारखण्ड में वर्णित है कि महादेव जी पार्वती से बोले -------- सुन्दरि, तुंग पर्वत के उच्च शिखर पर जो तीन दिन उपवास करके रहता है तथा प्राण त्याग करता है वह निश्चित ही शिव स्वरूप होता है! शिव के पश्चिम भाग में उत्तम स्फटिक लिंग है और लिंग के दक्षिण भाग में गरुड़ नामक तीर्थ है! हे पार्वती ------ जो मनुष्य तुंगनाथ व गंगा मैया के माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है वह सकल तीर्थों में जाने का फल प्राप्त करता है! मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से इस शीर्ष पर पतित पावनी गंगा मैया की पूजा - अर्चना करता है उसे हर की पौड़ी हरिद्वार के बराबर का माहात्म्य मिलता है । जो मनुष्य जितने जल कलशो  से गंगा मैंया का जलाभिषेक करता है वह उतने हजार वर्षों तक शिव लोक में विधमान रहता है इसलिए प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के साथ ही गंगा मैंया की पूजा - अर्चना करते है। कहा गया है कि जो मनुष्य गंगा मैंया का स्मरण मात्र करता है उसके जन्म - जन्मान्तरों से लेकर कल्प - कल्पान्तरों के पापों का हरण होता है। चन्द्रशिला के शीर्ष पर विराजमान पतित पावनी गंगा मैया की पूजा - अर्चना से निवृत्त होकर प्रकृति का रसिक व भगवान तुंगनाथ का भक्त जब चन्द्रशिला के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारता है तो भाव - विभोर हो जाता है! चन्द्रशिला के शिखर से जनपद रुद्रप्रयाग व चमोली की सैकड़ों फीट गहरी खाईयाँ, असंख्य पर्वत श्रृंखलाएं, जडी़ - बूटियों की सुगन्ध, हिमालय की श्वेत चादर, अपार वनाच्छादित पहाडियों के नजारे को निहाकर मानव जीवन के दुख : सुख भूलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाता है!


चन्द्रशिला के शिखर से चौखम्बा, पंवालीकाठा, कालानाग, बन्दरपूँछ, खतलिंग, स्वर्गारोहिणी, सतोपंथ, केदारनाथ, नीलकंठ, माणा, मलारी, हाथी पर्वत, कामेट, देवन, गौरी पर्वत, नन्दाघुघटी, त्रिशूल, नन्दाकोट, पंचाकुली, कार्तिक स्वामी, मदमहेश्वर, खाम-मनणी, पौड़ी, हरियाली व बधाणीताल सहित अनेक स्थानों का दृश्यालोकन यहाँ से किया जा सकता है! तुंगनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित भूपेन्द्र मैठाणी का कहना है कि जो व्यक्ति चन्द्रशिला के शीर्ष पर विराजमान गंगा मैया की नि:स्वार्थ भाव से पूजा - अर्चना व जलाभिषेक करता है वह सांसारिक सुखों को भोग कर अन्त में मोक्ष को प्राप्त होता है! देवस्थानम बोर्ड के यदुवीर पुष्वाण बताते है कि चन्द्रशिला के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारने के लिए प्रकृति प्रेमी सुबह की बेला पर चन्द्रशिला के शीर्ष पर पहुंचते है शिक्षाविद धीर सिंह नेगी देवानन्द गैरोला अनिल जिरवाण इंजीनियरिंग के के बिष्ट लखपत सिंह राणा का कहना है कि चन्द्र शिला शिखर पर सूर्य उदय व अस्त के समय प्रकृति के अद्भुत नजारे देखने से मन को अपार शांति मिलती है। प्रधान दैडा योगेन्द्र नेगी, मक्कू विजयपाल नेगी, पूर्व प्रधान प्रदीप बजवाल, सामाजिक कार्यकर्ता महिपाल बजवाल, दिलवर सिंह नेगी बताते है कि चन्द्रशिला शिखर से लेकर सम्पूर्ण तुंगनाथ घाटी में शीतकालीन खेलों को बढ़ावा देकर स्थानीय पर्यटन व्यवसाय को विकसित किया जा सकता है तथ इस वर्ष  केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने तुंगनाथ घाटी में शीतकालीन खेलों को बढ़ावा देने की दिशा में सराहनीय पहल की है।