विषय- नारी तेरी विडंबना
विधा- छंद मुक्त
नारी शक्ति मातृशक्ति मुझे जाने
क्या-क्या नाम दिया।
फिर भी जाने कितने रूपों में मुझे दुनिया ने हलकान किया।
नोचा किसी हाथ ने मुझको एसिड से किसी ने जला दिया।
गला किसी ने गर्भ में घोंटा किसी ने फाँसी का फंदा बना दिया।
कुछ रसूख वाले तो और इससे भी आगे बढ़ गए।
देकर वो मुझको आजादी मेरी जिम्मेदारी से ही मुकर गये।
मातृत्व से वंचित रही तो बाँझ की संज्ञा दी मुझको।
मेरी बारात हुई गर दुर्घटनाग्रस्त तो मनहूस कहा मुझको।
क्या मय की मस्ती में डूबे बारातियों का कोई दोष ना था।
बिना जाँच मुझे बाँझ कहा क्या इंसाफ खामोश ना था।
गँवार कहा बेखौफ मुझे गर मौन रहकर सब सहा।
विरोध कर तलाक लिया तो तब चरित्रहीन मुझे कहा।
वैधव्य लिखा तकदीर में तो अपशगुनी मुझको मान लिया।
जन्म से लेकर मृत्यु तक मेरे हर रूप का अपमान किया।
झूठ और आडंबर है सब हाँ सोच वही है आज भी।
ना तो मेरी स्थिति बदली ना बदला ये समाज ही।
अरे कहाँ की नारी शक्ति मै कहाँ की मातृशक्ति हूँ।
जब चारदीवारी के भीतर मैं तन्हा ही सिसकती हूँ।
ऐ जग वालों यदि तुम्हारी सोच ही ये अनमोल नही।
तो मातृशक्ति और नारी शक्ति के नाम का कोई मोल नही।
स्वरचित
सुनीता सेमवाल "ख्याति"
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड