मानव तेरे कुकृत्य
भ्रूण हत्या कहीं बलात्कार कहीं दहेज की आग में जल रहा ।
मानव तेरे कुकृत्यों से ये समाज है
दहल रहा ।
बेईमानी कहीं बाल अपराध और कहीं
अनेकों भ्रष्टाचार ।
नृशंस है तेरा ह्रदय जो तू पशुओं पर करता अत्याचार ।
कहीं घरेलू हिंसा कर मैखाना है मचल रहा ।
मानव तेरे को कुकृत्यों से ये समाज है दहल रहा ।
वृद्ध आश्रम तो खोल दिए पर मांँ-बाप का तिरस्कार करे ।
नारी शक्ति की बात करे और नारी पर दुराचार करे ।
तेरी सोच के गर्भ में कैसा जीव विषैला पल रहा ।
मानव तेरे कुकृत्यों से ये समाज है
दहल रहा ।
पुरुष ही नहीं वो नारी भी बराबर की अपराधी है।
जिसने अंश का गर्भ गिराने की इच्छा भी मन में साधी है ।
पुत्र जन्म की इच्छा जब से नारी का संबल रहा।
तब से ही कुकृत्य बढ़ा ये और समाज ये दहल रहा ।
नारी शक्ति मिल कर के तुम अन्याय का विरोध करो।
शक्ति स्वरूपा काली हो तुम अपनी शक्ति का बोध करो ।
अंत में सदा धर्म के आगे अधर्म ही विफल रहा ।
मानव तेरे कुकृत्यों से ये समाज है दहल रहा।
स्वरचित
सुनीता सेमवाल "ख्याति"
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड