उर्गम घाटी के हिमालय की उच्च शिखरों में विराजमान सोना शिखर पर्वत पर भगवती मां स्वनूल सुनन्दा का पावन धाम है। जहां रहती है भगवती स्वनूल। यहां गणेश समेत मां स्वनूल की मूर्तियां हैं मन्दिर के पास केवल तीन ही ब्रह्मकमल होते हैं।
मन्दिर के पास ही मां स्वनूल का सरोवर है। यह दिव्य शक्तिपुंज स्थान बड़ा पावन एवं पवित्र है। जहां अनुपम शान्ति एवं असीम आनंद की अनुभूति होती है। इस पावन धाम शक्तिपीठ का वर्णन महाभारत के वन पर्व में भी हुआ है जब वनवास के दौरान पांडव यहां से सोना भरकर ले गये थे। जागरों में भी भगवती को सोना शिखर से बुलाया जाता है। यक बैण रैंदी मेरी सोना शिखरे कहा जाता है कि जब देवी मायके आती है तो सूप्पे में सोना भरकर लाती है।
यह भी कहा जाता है कि इस सरोवर के पास भाग्यशाली लोगों को सोने की दिव्य तलवार के दर्शन भी होते हैं। भगवती स्वनूल का सोना शिखर सात माह बर्फ की चादर ओढ़े रहता है यहां की यात्रा जुलाई अगस्त में ही हो सकती है वो भी नन्दा अष्टमी से पहले भगवती स्वनूल का सोना शिखर दुर्गम जरूर है पर आस्था के आगे ये दुर्गम घाटियाँ भी झुक जाती है। पैतासार हवेगी तेरु सोनू मुटठू खानू जिसका जागरों में भी उल्लेख है। यहां जाने के लिये उर्गम से भर्की होते श्री फ्यूलानारायण मन्दिर से भनाई चांई फुलाना होकर सोना शिखर पहुंचा जाता है यहीं से आप चनाप घाटी होते हुये थैंग भी जा सकते है।
दूसरी ओर से जोशीमठ थैंग चनाप घाटी होते हुए सोना शिखर भनाई फ्यूलानारायण उर्गम घाटी पहुंच सकते हैं सोना शिखर की यात्रा लोकजात से पहले करनी होती है जिसके लिए अनुभवी गाइड की जरूरत होती है जो पूर्णं रूप से धार्मिक होती है जनदेश के सचिव लेखक लक्ष्मण सिंह नेगी कहते है कि सोना शिखर एक दिव्य शिक्तपीठ है। जब भी उर्गम घाटी में कोई बड़ा मेला आयोजित होता है तो नन्दा को नन्दीकुंड एवं स्वनूल को सोना शिखर से मायके बुलाया जाता है। हर साल लोकजात एवं चोपता मेले में दोनों बहिन को कुछ दिनों के लिए बुलाया जाता है और स्थानीय उत्पाद समुण के साथ जागरों के द्वारा भगवती नन्दा स्वनूल को विदा करते हैं।