देवभूमि तल्ला नागपुर क्षेत्र के पग - पग पर असंख्य देवी-देवताओं का वास - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ

ऊखीमठ : देवभूमि उत्तराखंड में सर्व प्रथम धार्मिक श्रद्धा से प्रभावित होकर श्रद्धालु भक्त भारत के विविध भागों से पदयात्रा करते हुए कठिनाइयों से इस पावन माटी में पहुंचे थे।


उसके पश्चात् कुछ दिनों में कुछ लोग परम भक्ति, कुछ एकान्तवास, कुछ संसार के झूठे प्रपंचों से त्राण पाने के लिए एवं कुछ आश्रम व्यवस्था के अनुरूप ब्रह्मचारियों को शिक्षा देने के लिए इस पावन भूमि में स्थापित होने लगे थे। शनै : शनैः यह पावन भूमि तपस्वियों की ही तपोभूमि नहीं रही अपितु गृहस्थी तपस्वियों का भी यह निवास स्थान बनने लगी
भारतभूमि के विभिन्न भागों से आने वाले ये श्रद्धालु पदयात्री इस देवभूमि उत्तराखंड की शान्त, एकान्त, भक्तियोग्य एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से आकर्षित होकर यही बस गये, परिणाम स्वरूप इस गढ़वाली भाषा में धार्मिक एकता तथा भावात्मकता होने के कारण समन्वय की क्षमता और धार्मिक सहिष्णुता अधिक बनती गयी। केदारखण्ड के अन्तर्गत अलकनंदा और मन्दाकिनी के मध्य का भूभाग तल्ला नागपुर प्राचीन काल से धार्मिक पर्यावरण, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं विद्वानों की जन्म व कर्म स्थली होने के कारण विशिष्ट पहचान रखता है। तल्ला नागपुर का आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक, बौद्धिक ज्ञान का वर्णन वेद, पुराणों में विस्तृत में मिलता है। तल्ला नागपुर के चरणों में पतित पावनी दुख: तारिणी अलकनन्दा व मन्दाकिनी पावन संगम व शीर्ष पर देव सेनापति कुमार कार्तिकेय की तपस्थली क्रौंच पर्वत तीर्थ होने के कारण इस भूभाग को जनपद की ह्रदय स्थली के रुप में जाना जाता है।तल्ला नागपुर के पग - पग पर असंख्य देवी - देवता आज भी जगत कल्याण व क्षेत्र की खुशहाली के लिए तपस्यारत है। जिसमें दुर्गाधार खूबसूरत हिल स्टेशन के ऊपरी हिस्से में विराजमान भगवती दुर्गा का पावन धाम है, इस तीर्थ में शिव शक्ति के तपस्यारत रहने से इस तीर्थ में पूजा - अर्चना का फल अधिक मिलता है। जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से लगभग 18 किमी दूरी तय करने के बाद बस, टैक्सी या निजी वाहन से दुर्गा भवानी के तीर्थ में पहुंचा जा सकता है। लोक मान्यताओं के अनुसार युगों पूर्व निकटवर्ती गाँव से एक गाय नित्य आकर इस पावन तीर्थ में एक पेड़ के नीचे झाडियों के मध्य अपने स्थनों से दूध अर्पित करती थी तथा यह क्रम महीनों तक चलता रहा। जब गाय के मालिक को ज्ञात हुआ तो एक दिन वह गाय का पीछा करते हुए उस स्थान पर पहुँचा तो ज्यूं ही गाय कुश घास के मध्य दूध अर्पित करने लगी तो उस ग्रामीण ने गाय पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया मगर गाय अपने जान बचाने में सफल रही मगर कुल्हाड़ी का प्रहार घास के मध्य शिवलिंग पर हुआ जिससे शिवलिंग दो भागों में विभाजित हुआ। उसके बाद ग्रामीणों ने उस स्थान पर खुदाई की तो वहां पर भगवान शंकर का स्वमयू लिंग प्रकट हुआ। ग्रामीणों ने शिवलिंग की बहुत गहराई तक खुदाई की मगर शिवलिंग का आदि अन्त का पता नहीं चला। उसके बाद आकाशवाणी हुई कि हे मनुष्यों तुम इस स्थान पर भगवान शंकर के साथ शक्ति की स्थापना करो कलियुग में यह तीर्थ परम सिद्धपीठ होगा।आकाशवाणी के अनुसार ग्रामीणों द्वारा वैदिक मंत्रोंच्चारण के साथ इस तीर्थ का निर्माण किया गया।लोक मान्यताओं के अनुसार जब भी क्षेत्र में कोई अप्रिय घटना या प्राकृतिक आपदा आने से पूर्व भगवती दुर्गा से को आवाज लगाकर सचेत कर देती।वर्तमान समय में पर्यटन विभाग द्वारा लगभग 7 करोड़ 59 लाख 54 हजार रुपये की लागत से तुंगेश्वर महादेव मन्दिर फलासी व दुर्गा देवी मन्दिर को कार्तिक स्वामी पर्यटन सर्किट से जोड़ कर स्थानीय पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा देने की कवायद शुरू कर दी गयी है जिससे भविष्य में तल्ला नागपुर क्षेत्र का सर्वांगीण विकास हो सकता है।विद्वान आचार्य जगदम्बा प्रसाद बेजवाल का कहना है कि इस पावन तीर्थ में पूजा - अर्चना करने से जन्म जन्मान्तरो से लेकर युग - युगान्तरों के पापों का हरण होता है। प्रधान बौरा जयन्ती गुसाईं, देवेश्वरी देवी, संगीता देवी यशवन्त सिंह क्षेत्र पंचायत सदस्य सुलेखा गुसाईं, दुर्गा कीर्तन मण्डली अध्यक्ष राखी गुसाईं का कहना है कि इस पावन तीर्थ की महिमा का जितना गुणगान करे उतना कम है क्योंकि यह पावन तीर्थ धार्मिकता के साथ - साथ प्राकृतिक सौन्दर्य से भी परिपूर्ण है। शिक्षाविद बीरेन्द्र कठैत, कुशलानन्द वशिष्ठ, तल्ला नागपुर महोत्सव समिति अध्यक्ष प्रताप मेवाल,देवेन्द्र बर्तवाल दिनेश नेगी बताते हैं कि इस पावन तीर्थ के चारों तरफ अपार वन सम्पदा, सीढ़ीनुमा खेतों की हरियाली, क्रौंच पर्वत तीर्थ से प्रवाहित होने वाली सुरगंगा कल - कल निनाद व हिमालय की चमकती सफेद चादर का नयनाभिराम मन को अपार शान्ति की अनुभूति करवाता है! महिपाल गुसाईं, आलोक गुसाईं, शूरवीर गुसाईं, मनीष गुसाईं, उत्तम गुसाईं, राहुल गुसाईं, कमलेश गुसाईं हरेन्द्र गुसाईं भूपेन्द्र सिंह बर्तवाल का कहना है कि पर्यटन विभाग द्वारा इस पावन तीर्थ को कार्तिक स्वामी पर्यटन सर्किट से जोड़कर चहुंमुखी विकास की पहल शुरू तो कर दी है मगर ग्रामीण क्षेत्र में होम स्टे योजना को भी बढा़वा मिले तो तल्ला नागपुर क्षेत्र का हर क्षेत्र में विकास हो सकता है।