जरूरतमंद एवं गरीब लोगों को फिर आरंभ हुई "समौण इंसानियत की" गर्माहट रिश्तों की
● इस बार नहीं रि-यूज्ड नहीं बल्कि फ्रेस कपड़ों का होगा वितरण
● सक्षम लोगों से की मुहिम से जुड़ने की अपील
मुहिम "समौण इंसानियत की" उत्तखण्ड में समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी "पारस" व उनकी दो बेटियों मनस्विनी मैठाणी एवं यशस्विनी मैठाणी की खास मुहिम है ।जो समय-समय पर जरूरतमंद लोगों की सेवा में हर वक़्त तत्पर रहते हैं । विगत 4 वर्षों से यह परिवार हर वर्ष गरीब असहाय लोगों के घर-घर जाकर उन्हें गर्म कपड़े भेंट करता आ रहा है । यहां बताते चलें कोरोना कोविड19 लॉक डाऊन के दरमियान भी मैठाणी परिवार देशभर में खासा चर्चित रहा । समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी ने अपनी दो छोटी बेटियों मनस्विनी और यशस्विनी को मुहिम में शामिल कर 3 हजार 179 परिवारों को 67 दिनों में दस-दस किलो राशन उपलब्ध कराई थी । इस मुहिम को "समौण में कुट्यारी स्वाभिमान की" नाम दिया गया था ।
मुहिम की खास बात यह भी रही कि शशि भूषण मैठाणी ने राशन वितरण में सोशल डिस्टेंसिंग का एक ऐसा फार्मूला निकाला कि जिसने शासन प्रशासन में बैठे नुमाइंदों को भी खासा प्रभावित किया । इन्होंने जरूरतमंद परिवार के व्यक्ति की डिटेल से डिजिटल कूपन बनाया जो सिर्फ राशन विक्रेता और जरूरमंद के रजिस्टर्ड मोबाईल पर भेजा जाता था जिसे दिखाने पर वे कोडिंग मिलान करने पर जरूरतमंद परिवार को आसानी से निःशुल्क राशन प्राप्त हो रही थी और वितरण में पारदर्शिता भी बनी रही । उक्त फार्मूले ने रुद्रप्रयाग के तत्कालीन जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल को खासा प्रभावित किया जिसके बाद उन्होंने शशि भूषण से पूरी जानकारी भी जुटाई । मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बाकायदा वीडियो संदेश जारी कर मैठाणी व उनकी दोनों समाजसेवी बेटियों की सराहना की ।
अब एक बार फिर आरंभ हुई मुहिम
राशन में "कुट्यारी स्वाभिमान" के बाद अब एक बार फिर से गर्म कपड़ों के वितरण की मुहिम "समौण इंसानियत की"- "गर्माहट रिश्तों की" शुरू कर दी गई है । और इस बार मैठाणी ने शारदीय नवरात्र के अष्टमी व नवमी में कन्यापूजन से लेकर व विजयादशमी में अभियान का शुभारंभ किया है । शुरुआती अभियान में मैठाणी परिवार द्वारा तीन दर्जन गरीब बच्चों में गर्म कपड़े खरीदकर वितरित किए गए ।
इस बार री-यूज नहीं, फ्रेश कपड़े खरीदकर बांटे जाएंगे
शशि भूषण मैठाणी पारस ने बताया कि बीते 5 वर्षों में नए गरम कपड़ों के साथ-साथ साफ सुथरे री-यूज कपड़ों का भी वितरण किया जाता था । परन्तु इस बार केवल नए कपड़े ही बांटे जाएंगे । उन्होंने बताया कि इस बार देश और दुनियाँ में कोविड19 की महामारी फैली हुई है और ऐसे में गरीब असहाय लोगों को री-यूज्ड कपड़े बांटना किसी खतरे से कम नहीं होगा । मैठाणी ने बताया कि इस बार हम संख्या कम ही लोगों को कपड़े बाटेंगे लेकिन वह एकदम फ्रेस व नए कपड़े ही होंगे । जिसकी शुरुआत शारदीय नवरात्रों से कर दी गई है ।
सक्षम लोगों से भी की है अपील
समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी पारस ने कहा कि वह हमेशा अपने सामाजिक अभियानों का शुभारंभ अपने निजी संसाधनों से करते हैं और धीरे-धीरे कई इच्छुक लोग भी मुहिम का हिस्सा बनने के लिए आगे आते हैं और फिर सबके सहयोग से मुहिम विस्तार ले लेती है । लेकिन इस बार की मुहिम महंगी होगी । इसमें हर कदम पर पैसे खर्च करने पड़ेंगे । क्योंकि इस बार री-यूज्ड नहीं बल्कि नए कपड़े खरीदकर बांटे जाने हैं । इस नाते सकारात्मक व रचनात्मक विचारों वाले लोगों से अपील भी की गई है कि वह अगर चाहें तो इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं । महज रुपया 100 से लेकर रूपया 200 तक के खर्चे में लोग अच्छे व सस्ते कपड़े बाजार से हमें उपलब्ध करा सकते हैं ।
क्या है मुहिम समौन इंसानियत की
समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी पारस ने जानकारी दी कि यूथ आइकॉन क्रिएटिव फाउंडेशन (वाई.आई.सी.एफ.एस.) के तहत भिन्न-भिन्न कार्यों को सम्पादित करने के लिए अभियानों को अलग - अलग नाम दिए जाते हैं उसी क्रम में विगत चार वर्षों से "समौण इंसानियत की" मुहिम सर्दियों में जरूरतमंद लोगों को गरम कपड़े बांटने के लिए आरम्भ की गई थी । इस मुहिम के तहत अभी तक साढ़े आठ हजार से ज्यादा लोगों को गरम कपड़े दिए जा चुके हैं । शशि भूषण ने बताया कि हम सर्दियों में हर रात को मलिन बस्तियों, अस्पतालों, निर्माणाधीन भवनों व सड़क के किनारे सो रहे जरूरतमंद लोगों को ठण्ड से बचाने का प्रयास करते हैं । प्रदेश के अन्य जनपदों में भी मुहिम "समौण इंसानियत की" के तहत हर साल वे गरम कपड़े लेकर जाते हैं ।
छोटी बेटी तब महज 7 साल की थी जब
ऊखीमठ! छह माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों ने गावों की ओर वापसी का रूख कर दिया है। दीपावली तक सभी भेड़ पालकों के अपने गाँव वापस लौटने की परम्परा है! पूर्व में भेड़ पालकों के गाँव से बुग्यालों की ओर रवाना होने तथा छह माह बुग्यालों में प्रवास के बाद गाँव लौटने पर भव्य स्वागत किया जाता था। मगर भेड़ पालन व्यवसाय धीरे - धीरे कम होने के साथ ही यह परम्परा भी समाप्त हो चुकी है।बता दें कि केदार घाटी के सीमान्त गावों के भेड़ पालक अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह से अपने गाँव से सुरम्य मखमली बुग्यालों के लिए रवाना हो जाते हैं तथा धीरे - धीरे अत्यधिक ऊंचाई वाले बुग्यालों में प्रवास करने लगते हैं! भेड़ पालको का जीवन आज भी किसी तपस्या से कम नहीं है।क्योंकि भेड़ पालक आज भी सुरम्य मखमली बुग्यालों में बिना संचार, विद्युत व्यवस्था के दिन व्यतीत करते हैं। जबकि अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ईधन व पेयजल का भी संकट बना रहता है। क्योंकि ऊंचाई वाले बुग्यालों में सिर्फ मखमली घास होने के कारण तथा पेड़ पौधों के न होने से ईधन का अभाव बना रहता है। भेड़ पालकों का दाई व लाई त्यौहार मुख्य रुप से मनाया जाता है।प्रदेश सरकार द्वारा भेड़ पालकों को प्रोत्साहन न देने तथा ऊंचाई वाले इलाकों में अधिक कठिनाई होने के कारण भेड़ पालन व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। छह माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने के बाद इन दिनों भेड़ पालको ने गाँव की ओर रूख करना शुरू कर दिया है। कुछ भेड़ पालक अभी भी लगभग सात हजार फीट की ऊंचाई पर प्रवास कर रहे हैं जो दीपावली तक गाँव लौट सकते हैं! जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा बताते है कि पूर्व में भेड़ पालको के गाँव लौटने पर ग्रामीणों में भारी उत्साह बना रहता था मगर संचार युग के कारण भेड़ पालकों के गाँव आगमन का उत्साह सोशल मीडिया में कैद हो गया है। कनिष्ठ प्रमुख शेलेन्द्र कोटवाल ने बताया कि पूर्व में भेड़ पालन व्यवसाय यहाँ के जनमानस का मुख्य व्यवसाय था मगर भेड़ पालन व्यवसाय में गिरावट आना चिन्ता का विषय बना हुआ है। प्रधान संगठन ब्लॉक अध्यक्ष सुभाष रावत, भेड़ पालन व्यवसाय एसोसिएशन अध्यक्ष महादेव धिरवाण ने बताया कि भेड़ पालन व्यवसाय की परम्परा हमारा पौराणिक व्यवसाय है धीरे - धीरे युवाओं को भी भेड़ पालन व्यवसाय से जोड़ने के सामूहिक प्रयास किये जायेंगे। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन का कहना है कि पूर्व में भेड़ पालको के गाँव से विदा होने तथा गाँव लौटने पर जिस प्रकार ग्रामीणों में उत्साह बना रहता था ग्रामीणों द्वारा भेड़ पालको का भव्य स्वागत करने की परम्परा थी उस परम्परा को जीवित रखने के भरसक प्रयास किये जायेंगे।