पर्यटन - तीर्थाटन पौराणिक संस्कृति गाथाएँ समेटे उर्गम घाटी - रघुबीर नेगी उर्गमघाटी

सबके कष्ट हरते है भगवान घंटाकर्ण  : सीमान्त तहसील जोशीमठ जहाँ पंचबदरी में ध्यान बदरी एवं पंचम केदार कल्पेश्वर महादेव विराजमान है, पर्यटन तीर्थाटन पौराणिक संस्कृति गाथाएँ समेटे उर्गम घाटी एक दिव्य घाटी है। जहाँ भगवान नारायण के पार्षद है घंटाकर्ण भूमि क्षेत्रपाल का दिव्य मंदिर जहाँ होती है भक्तों की मनोकामना पूर्ण। उर्गमघाटी के बडगिण्डा गांव में है भगवान नारायण के पार्षद श्री घंटाकर्ण का मंदिर। उत्तराखण्ड सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री  विधायक राजेन्द्र भंडारी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
कौन है घंटाकर्ण
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार घंटाकर्ण एक निशाचर थे और उनके कानों में घंटियां बंधी रहती थी वो भगवान भोलेनाथ के अलावा दूसरे किसी भी देवो का नाम लेना और सुनना पसंद नही करते थे। एक दिन उन्होंने शिव से कहा की भगवन मुझे इस राक्षस योनि से मोक्ष दिजीये। भगवान शिव ने घंटाकर्ण से कहा कि मैं तुम्हे मोक्ष नही दे सकता इसके लिए तुम्हे बदरीनाथ जाना पड़ेगा। भगवान बदरी विशाल ही तुम्हें मोक्ष दे सकते हैं मोक्ष देने का अधिकार केवल भगवान नारायण को ही है। शिव की आज्ञा लेकर घंटाकर्ण बदरीनाथ चला गया पर उसे काफी दिनों तक भगवान बदरीनारायण के दर्शन नही हुये। घंटाकर्ण रोने चिल्लाने लगा कि हे नारायण मुझे दर्शन दे दो मुझसे भूल हो गयी। मैं शिव के अलावा किसी अन्य देव को नहीं मानता था तब भगवान बदरी विशाल ने घंटाकर्ण को मोक्ष देकर अपना पार्षद बना कर उसे भूमि क्षेत्रपाल बना दिया। उर्गम घाटी में भगवान ध्यान बदरी है जहाँ 12 महीने भगवान विष्णु के द्वार खुले रहते हैं। इसलिए घंटाकर्ण वहाँ के भूमि क्षेत्र है भूमि क्षेत्रपाल के साथ वीर हिसवा पाबै की पूजा की जाती है। इसी स्थान पर हिसवा पाबै का निशान है घंटाकर्ण के इस स्थान को दमै भी कहा जाता है। 



क्योंकि कहते है दमैलोक गाथाओं के अनुसार जब भगवती ने तिमुडिया बीर का पहला सर कटा और वो उर्गम घाटी के गाँव में गिरा। सर कटने के बाद भी वो उर्गम घाटी में आतंक करने लगा तो भूमि के रक्षक घंटाकर्ण ने उसे दमाऊ के अन्दर बंद कर अपने साथ ले जाने लगे। घंटाकर्ण के मंदिर के पास पहुंचकर दमाऊ फूट गया और बीर बाहर निकल गया। घंटाकर्ण ने उसे वचन देकर कहा कि मेरी यहां जितनी भी पूजा होगी वो सब तेरी ही होगी। तुझे हर साल भरपूर पूजा दी जायेगी हर बार लोग तेरा आवह्नन करेंगे। सब तामसिक पूजा तेरे लिए होगी। आज से तुम मेरे साथ इस घाटी के रक्षक होंगे तुमारा मूल स्थान यहां से 20 किमी दूर हिसवा ठेला में होगा। जहां लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर तेरी हर साल पूजा करेगें। यहां पर तुमारा केवल निशान रहेगा जब तेरा स्मरण होगा तब तुम प्रकट होगें तब से मंदिर के बाहर हिसवा पाबै का निशान है। जग कल्याण के लिए भूमि क्षेत्र पाल भर्की भूमियाल  दनाणधौड़ ने अपने बडे भाई के स्थान पर तीन दिवसीय पूजा अर्चना कर खुशहाली की कामना की। कोरोना वायरस से घंटाकर्ण की कृपा से उर्गम घाटी सुरक्षित रही भगवान घंटाकर्ण के आदेश पर उर्गम घाटी में 10 दिसम्बर 2020 से पांडव नृत्य का आयोजन किया जाएगा!