"ना ही चैन मिलता है और
ना ही तुम मिलते हो ,
इन दोनों के बिना ये जीवन
अधूरा सा लगता है ।
किस भीड़ में रह गई
भटकती मेरी किस्मत ,
ढ़ूँढ़ता हूँ इस जमी पर चल कर
तेरे पैरों के शायद निशां मिल जाए
आज भी मुझे ये यकीन सा लगता है ।
हो कहीं तुम भीड़ में
सुनता हूँ में अक्सर गौर से ,
तेरे पैरों की पायजैब ही खनक जाए
फिर से बजी हो जैसे मुझे ऐसा लगता है ।
ना ही चैन मिला और ना ही तुम मिलते हो,
इनके बिना ये जीवनअधूरा सा लगता है ।
बना दूँ तुम्हे अपना उम्र भर के लिए
काश मेरी जिन्दगी में ये दिन भी आ जाए ,
जैसे हो गई हो तुम मेरी मुहोब्बत
अब न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है ।
न ही चैन मिला न तुम मिले---
इनके बिना ये जीवन अधूरा---
गज़ल -(तेरे बिना जीवन अधूरा )
लेखक-चन्द्र मोहन सिंह